ख़्वाबो का जहाँ

बंद आँखों में ख्वाब पनपते है,
कुछ उलझे सवालों के जवाब पनपते है,
ख्वाबों का रास्ता लेजाता है उस जहाँ में,
जहा सचमुच इंसान पनपते है।

फूलों की क्यारी, बच्चों की किलकारी
ख़ुशनुमा बुढापा, मदमस्त जवानी
हर पहलू ज़िन्दगी का खूबसूरत है वहा,
वहां काँटों में भी, गुलाब पनपते है,
वहा सचमुच इंसान पनपते है।

ना गरीबी, ना है पेट की चिंता
ना अंधेरा , ना किराए की चिंता
वहां बचपन मजदूरी में नही
रोमांच में कटता है,
एक छोटा टुकड़ा , सौ टुकड़ो में बटता है
ना लालच , ना मेरा -तेरा
कुछ ऐसा है सपनो का बसेरा,
वहां मलबों में भी मकान पनपते है,
वहा सचमुच इंसान पनपते है।

वहां जिस्म नही जिसे तौलोगे,
काला - गोरा किसे बोलोगे
ना हवस , ना दरिंदें है,
सीधे-सादे परिंदे है
असीफा का बचपन सुरक्षित है जहां,
हज़ारो ख्वाहिशे उभरती है जहा
बन्द आँखों मे ऐसे ख्वाब पनपते है,
जहा सचमुच इंसान पनपते है।


©diksha_verma




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